‘कंजूस’ के मंचन में दर्शकों के ठहाको से गूंज उठा सभागार
40 दिवसीय कार्यशाला के अन्तर्गत हुआ हास्य नाटक का मंचन
क्राइम रिव्यू
लखनऊ। प्रतिष्ठित नाट्य संस्था आकांक्षा थियेटर आर्ट्स भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय (संस्कृति विभाग), नई दिल्ली के वर्ष 2020-21 के रिपेटरी ग्रान्ट की द्वितीय प्रस्तुति के रूप में मौलियर की सुप्रसिद्ध मूल नाट्य रचना ‘‘कंजूस’’ का मंचन नगर के सुप्रसिद्ध रंगनिर्देशक अशोक लाल के निर्देशन में मंचित किया गया। 40 दिवसीय कार्यशाला के अन्तर्गत इस हास्य नाटक का मंचन किया जा रहा है। कार्याशाला निर्देशन एवं मंच प्रस्तुतिकरण परिकल्पना उ0प्र0 संगीत नाटक अकादमी अवार्डी अचला बोस के कुशल निर्देशन में संचालित किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन एवं दीप प्रज्जवलन मनमोहन तिवारी प्रबन्धक डी0ए0वी0पी0जी0 कालेज, लखनऊ द्वारा करते हुए प्रश्नगत समस्त कलाकारों को आर्शीवाद प्रदान किया। अन्त में संस्था के अध्यक्ष बी0एन0 ओझा ने संस्था के कलाकारों को आर्शीवाद प्रदान करते हुए संस्था की गतिविधियों की जानकारी दी।
कथानक के अनुसार प्रथम अंक में मिर्जा सखावत बेग जो कि बिधुर हैं, अपने बेटे फर्रूख तथा बेटी अज़रा के साथ इस घर में रहते हैं। मिर्जा के घर में इन तीनों के अतिरिक्त घरेलू नौकर नासिर तथा कोचवान व बबर्ची अल्फू के साथ नम्बू नौकरी करते हैं। नासिर मिर्जा़ की बेटी अज़रा से बेपनाह मोहब्बत करते हैं तथा मिर्जा के बेटा फरूख मरियम नाम की लड़की को चाहता है।मिर्जा बहुत ही कन्जूस होने के साथ-साथ शक्की मिज़ाज का है। अपने ही घर के बगीचे की जमीन में दस हजार अशर्फियां दबाकर महफूज़ रखता है। मिर्जा को हमेशा इस बात का शक होता है कि उसके घर के नौकर कहीं उसकी रकम चुरा न ले। इसलिए वह नम्बू नौकर से कहता है कि वह लोगों को यह न बताता फिरे कि उसके बाद गड़े दबे अशर्फियां रखी हैं। इधर फर्रूख और अज़रा अपने-अपने मोहब्बत की दास्तान सुनाकर शादी की योजना बनाते हैं। इसी बीच मिर्जा वहाँ पहुँचकर अपनी शादी के बारे में फर्रूख और अज़रा से राय पूछता है। लेकिन जब फर्रूख मियां को यह पता चलता है कि मिर्जा फर्रूख की प्रेमिका मरियम से खुद ही निकाह करना चाहता है तो फर्रूख मियां के पैरों तले जमीन खिसक जाती है। दोनों बाप-बेटे में खूब कहा सुनी है। लेकिन मिर्जा अपने इरादे से टस से मस नहीं होते हैं और साथ ही साथ मिर्जा अपनी बेटी अज़रा का निकाह असलम साहब के करवाने की जिद्द पर उतर आते हैं। ऐसी स्थिति में नासिर मिर्जा की बेटी अज़रा को समझाता है कि इस नाजुक मौके पर उनकी हाँ में हाँ मिलना ही उसके लिए बेहतर होगा।
दूसरे अंक में मिर्जा का बेटा फर्रूख को बनाव सिंगार के साथ-साथ खर्चीले स्वभाव का है वह साहूकार से अस्सी हजार रूपये बतौर कर्ज लेना चाहता है। दलाल के जरिये जब मिर्जा को पता चलता है कि उसका बेटा अपने लिए कर्ज लेने के लिए दलाल का सहारा लेता है तो मिर्जा बहुत नाराज़ होते हैं। इसी बीच फरज़ीना मिर्जा से रूपये ऐंठने के लिए मरियम का रिश्ता लेकर मिर्जा के बात करने आती है। लेकिन जब फरज़ीना को यह पता चलता है कि मरियम मिर्जा के बेटे फर्रूख को चाहती है तो वह आश्चर्य चकित रह जाती है।
तीसरे अंक में मिर्जा मरियम से निकाह करने से पहले उससे मिलने की ख़्वाईश ज़ाहिर करता है तो फरज़ीना मरियम को दिखाने साथ लेकर मिर्जा के घर पहुंचती है। लेकिन मिर्जा के बेटा फर्रूख इस निकाह से नाखुश रहता है। ऐसी स्थिति में मिर्जा अपने बेटे फर्रूख से झूठ बोलकर मरियम से उसके मोहब्बत का राज़ उगलवा लेता है। अन्ततः बाप-बेटे में एक लम्बी नोंक-झोंक के बीच मिर्जा को यह पता चलता है कि उसकी अशर्फियां चोरी हो गयी है । तब मिर्जा पागलों की तरह आग बबूला होकर घर में हुई चोरी की रिपोर्ट दर्ज करा देता है।
चैथे अंक में हवलदार के आते ही मिर्जा चोर को पकड़ने की बात करता है। कई विषम परिस्थितियों से गुजरता हुआ यह नाटक वहां पर एक नया मोड़ लेता है जहां असलम साहब का प्रवेश होता है। असलम साहब के आने पर कई राज अपने-आप खुल जाते हैं कि नासिर और मरियम दोनों असलम साहब के खोये हुए बेटे-बेटी हैं जो एक समुन्दरी तूफान में बिछड़ जाते हैं। नाटक के अन्त में असलम साहब अपने बेटे नासिर की शादी मिर्जा की बेटी अज़रा से और मिर्जा के बेटे फर्रूख की शादी मरियम से इस शर्त पर तय करा देते हैं कि उसकी खोई हुई अशर्फियां उसे मिल जायेंगी। लेकिन मिर्जा के बेटे फर्रूख अपने बाप से कहता है कि अगर वह अपने बेटे की शादी मरियम से करा देें तो उसकी खोई हुई अशर्फियां अभी उसे मिल सकती हैं। आखिरकार दौलत की भूख में मिर्जा की जि़द को तोड दिया और वह अन्ततः राजी हो जाता है लेकिन मिर्जा असलम साहब से गुज़ारिश करता है फिर असलम साहब दोनो की शादी का जिम्मा अपने ऊपर ले लेता है। इसी के साथ इस हास्य नाटक का समापन हो जाता है। नाटक में मिर्जा शेखावत बेग की प्रधान भूमिका अचला बोस, मरियम की भूमिका में श्रद्धा बोस तथा फरजीना बुआ की भूमिका में अचला बोस ने बहुत ही सुन्दर स्वभाविक अभिनय से रंगदर्शको को अपने माया जाल में बांधे रखा। अन्य कलाकारों में अजरा की भूमिका में सोनाली बाल्मीकी, फरूख की भूमिका में ऋषभ तिवारी, नम्बू की भूमिका में मोहित यादव, असलम साहब की भूमिका में आनन्द प्रकाश शर्मा नासिर की भूमिका में शेखर पाण्डेय, अल्फू की भूमिका में शोभित वर्मा, खेरा की भूमिका में संदीप कुमार, हवलदार की भूमिका में आदर्श तिवारी तथा दलाल की भूमिका में सचिन कुमार शाक्य ने अपने सशक्त अभिनय से दर्शको को ठहाके लगाने पर मजबूर कर दिया।
परोक्ष में सेट डिजाइनिंग कर्मेन्द्र सिंह गौर तथा अभिषेक शर्मा का था। सेट निर्माण में सचिन सिंह चैहान तथा अरूण कुमार का था। मंच सज्जा महेश चन्द्र कनौजिया का था। रूप सज्जा की कमान सुश्री अर्चना सिंह तथा शिव कुमार श्रीवास्तव शिब्बू का था एवं वस्त्र विन्याश सुश्री दीपिका बोस एवं सपना सिंह का था। जो कि नाटक के अनुरूप था। संगीत संयोजन सौरभ सिंह का था एवं संगीत निर्देशन निखिल कुमार श्रीवास्तव का था। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यह हास्य नाटक दर्शको पर अपना विशेष प्रभाव छोड गया।