यूपी की सहकारिता की राजनीति में टूट गया मुलायम परिवार का तिलिस्म, 30 साल बाद यादव परिवार हुआ आउट
पीसीएफ के अध्यक्ष बने वाल्मीकि त्रिपाठी भाजपा के सहकारिता प्रकोष्ठ से जुड़े थे। जबकि उपसभापति के रूप में जीते रमाशंकर जायसवाल आरएसएस के सहयोगी संगठन सहकार भारती से जुड़े हैं
लंबे समय बाद को-ऑपरेटिव फेडरेशन (पीसीएफ) लिमिटेड की प्रबंध समिति के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव में मुलायम परिवार का वर्चस्व टूटा है। वाल्मीकि त्रिपाठी को पीसीएफ का अध्यक्ष और रमाशंकर जायसवाल को उपाध्यक्ष के रूप में निर्विरोध चुना गया है। इसके साथ ही शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव को पीसीएफ चेयरमैन की कुर्सी से बेदखल कर दिया गया है। इस तरह पीसीएफ पर बीजेपी का दबदबा कायम हो गया।
भाजपा-आरएसएस से जुड़े लोगों की एंट्री
पीसीएफ के अध्यक्ष बने वाल्मीकि त्रिपाठी भाजपा के सहकारिता प्रकोष्ठ से जुड़े थे। जबकि उपसभापति के रूप में जीते रमाशंकर जायसवाल आरएसएस के सहयोगी संगठन सहकार भारती से जुड़े हैं। इस तरह बीजेपी ने पीसीएफ की मैनेजिंग कमेटी के बीजेपी और आरएसएस से जुड़े सभी सदस्यों को बना दिया है। भाजपा ने सपा के इस किले को भेदते हुए सहकारी समितियों में सपा का पूरी तरह सफाया कर दिया। यूपी में यह पहला मौका है जब सपा पर किसी शीर्ष सहकारी संगठन का कब्जा नहीं है।
पीसीएफ सहकारी राजनीतिक क्षेत्र में एकमात्र संगठन था, जिसका चुनाव भाजपा सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान नहीं हो सका था। अध्यक्ष और उपसभापति पद पर भाजपा ने संघ से जुड़े दोनों नेताओं को बैठाकर भविष्य के लिए अपनी राजनीतिक जड़ों को मजबूती से स्थापित करने की आधारशिला रखी है। यूपी में 7500 सहकारी समितियां हैं, जिनमें करीब एक करोड़ सदस्य हैं। भाजपा ने इन समितियों का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है।
सहकारिता में सपा की आखिरी कुर्सी भी फिसली
योगी सरकार के पहले कार्यकाल में यूपी कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, यूपी सहकारी ग्राम विकास बैंक, यूपी राज्य निर्माण सहकारी संघ लिमिटेड, यूपी राज्य निर्माण और श्रम विकास सहकारी संघ लिमिटेड जैसे शीर्ष सहकारी संस्थानों के साथ-साथ अन्य शीर्ष सहकारी संस्थाओं पर भाजपा का झंडा पहले ही फहराया जा चुका था। ऐसे में विधायक शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव का कब्जा सिर्फ पीसीएफ पर था। इस कुर्सी पर काबिज होकर बीजेपी ने सपा और मुलायम परिवार को सहकारिता क्षेत्र की राजनीति से हटा दिया है।
बता दें कि मुलायम सिंह यादव जब साल 1977 में पहली बार सहकारिता मंत्री बने थे, तब उन्होंने सहकारिता क्षेत्र में अपना दबदबा कायम किया था। मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए भी यह विभाग या तो उनके पास रखा गया या फिर उनके छोटे भाई शिवपाल यादव को सौंप दिया गया। सपा ने अपनी राजनीति में सहकारिता का पूरा इस्तेमाल किया। सहकारिता क्षेत्र की संस्थाओं पर मुलायम परिवार का कब्जा रहा है।
10 साल तक कुर्सी पर रहे शिवपाल के बेटे आदित्य
शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव पिछले 10 साल से पीसीएफ के चेयरमैन की गद्दी पर बैठे थे। हालांकि इस बार उन्होंने प्रबंध समिति सदस्य के लिए नामांकन दाखिल नहीं किया। वहीं, पीसीएफ की प्रबंध समिति के जिन 11 सदस्यों ने निर्विरोध जीत दर्ज की है, उनमें भाजपा का सहकारी प्रकोष्ठ और आरएसएस के वैचारिक संगठन सहकार भारती से जुड़े लोग शामिल हैं। इस तरह अपने पीसीएफ की कुर्सी पर काबिज बीजेपी ने सपा का किला पूरी तरह से मिटा दिया।
वर्ष 1960 में पहले अध्यक्ष जगन सिंह रावत चुने गए
उत्तर प्रदेश के सहकारी क्षेत्र में वर्ष 1960 में पहले अध्यक्ष जगन सिंह रावत चुने गए। इसके बाद रऊफ जाफरी और शिवमंगल सिंह 1971 तक चेयरमैन बने रहे। इसके बाद सहकारिता की कमान प्रशासक के रूप में अधिकारियों के हाथ में आ गई। साल 1991 में मुलायम सिंह यादव परिवार की एंट्री हुई थी। हकीम सिंह करीब तीन महीने तक चेयरमैन बने और 1994 में शिवपाल यादव चेयरमैन बने।
सपा की था सहकारिता राजनीति में पकड़
तत्कालीन सहकारिता मंत्री रामकुमार वर्मा के भाई सुरजनलाल वर्मा भाजपा काल में अगस्त 1999 में अध्यक्ष चुने गए थे। आपको बता दें कि सहकारिता क्षेत्र में बसपा भी सपा की पकड़ नहीं तोड़ पाई, जबकि मायावती 2007 से 2012 तक पांच साल तक मुख्यमंत्री रहीं। बसपा के दौर में सपाइयों ने कोर्ट में मामले को उलझाकर चुनाव नहीं होने दिया और अपना राजनीतिक वर्चस्व कायम रखा, लेकिन योगी सरकार ने दूसरा कार्यकाल आते ही सहकारिता क्षेत्र से मुलायम परिवार का पूरी तरह सफाया कर दिया।