आदतों का प्रत्येक जीवन में दिखाई देता है प्रभाव
बुरी आदतें कैसे सुधारे
डाँ0 ए0 पी0 शुक्ल
आदतों का प्रत्येक जीवन में प्रभाव दिखाई देता है। आदतें कुछ अच्छी भी होती हें, कुछ बुरी भी। अधिकांश लोगों के जीवन में दोनों ही कम या अधिक मात्रा में मौजूद हैं अपनी बुरी आदतों को कैसे छोड़ा जाए ? नई अच्छी आदतों को कैसे विकसित किया जाए ? यह प्रश्न प्रायः सभी के मन में उठा करता है।
वास्तव में आदतें ऐसी जटिल नहीं हैं, जिनसे छुटकारा न पाया जा सके। अच्छी आदतों के लिए तो कोई समस्या नहीं है। परन्तु वे आदतें जो व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन को प्रभावित करती हैं, प्रगति के मार्ग में बाधा बनती हैं, उन्हे दूर किया ही जाना चाहिए। दूर करना कठिन भी नही है।
आदत क्या है ? इसे सरल रूप में यों कह सकते हैं-व्यक्ति के द्वारा दैनिक जीवन में किए जाने वले कार्य, सोचने का तरीका एवं रहने का ढंग सब मिलकर आदतों का निर्माण करते हैं। जैसे – अपव्ययता, अस्वच्छता, दीर्घ सूत्रता, एकाग्रता का अभाव, अपशब्द बोलना, दूसरों को कष्ट-हानि पहुँचाना कुछ बुरी आदतें हैं। इनका निर्माण धीरे-धीरे होता है। जब इन्हे अनुकूल वातावरण मिलता है, तो वहाँ अच्छी तरह विकसित होने का अवसर मिल जाता है। अच्छी आदतें भी इसी प्रकार जीवन में सम्मिलित होती हैं।
आवश्यक यह है कि उन आदतों को स्पष्ट रूप से पहचाना जाय, जिन्हे छोड़ना है। जिन परिस्थितियों में इन्हे उभरने का मौका मिलता है, उन्हे भी समझा जाए। जैसे – अस्त-व्यस्त जीवन एक बुरी आदत है। कोई इससे छुटकारा पाना चाहता है तो सर्व प्रथम उसे अपने सप्ताह भर के जीवनक्रम पर पैनी दृष्टि डालनी चाहिए एवं उन आदतों को कागज पर लिखना चाहिए, जो अस्त-व्यस्तता का कारण बनी हुई हैं, जैसे – अपने कमरे की अस्वच्छता, प्रयोग में आने वाले कागज, कलम, कपड़ों को इधर-उधर रखना, किसी वस्तु का प्रयोग कर उसे यथास्थान वापस न रखना आदि। इस प्रकार प्रत्येक सूक्ष्म गलती पर अंकुश रखा जा सकेगा। उनमें से एक-एक को लेकर उन्हे हटाना सरल होगा। गंदगी फैलाने की आदत को मात्र सफाई से रहने की सीख मिल जाने पर ही दूर नहीं किया जा सकता है। इसके लिए आदतों की गहराई में जाकर उन्हें निकालना पड़ेगा।
कहने का तात्पर्य यह है कि किसी भी आदत में परिवर्तन के लिए अस्पष्ट संकल्प नहीं होना चाहिए। जैसे यह कहना कि मैं कड़ी मेहनत से पढूँगा, अस्पष्ट संकल्प है। इसे मापा नहीं जा सकता है। इसकी अपेक्षा यह संकल्प सही होगा कि मैं प्रतिदिन दो घंटे नियमित रूप से पढूँगा। इसमें सुनिश्चितता है। छोटी- छोटी, किन्तु सुनिश्चित सफलता प्रदान करने वाले लक्ष्य को निर्धारित करके अपनी आदतों को बदलने में सहायता पाई जा सकती है। एक बार मिली सफलता, दूसरी बड़ी सफलता की राह खोलती है, अपने अंदर विश्वास जगाती है। व्यक्ति कोई दीर्घसूत्रता से परेशान है, आज के काम को कल पर टालता है एवं विकल्पयुक्त संकल्प करता है, जैसे मैं रविवार को आठ घंटे लगातार सफाई के कार्य को करने वाला हूँ तो शायद ही उसका यह संकल्प पूरा हो सके। लेकिन यदि वह प्रत्येक रविवार एक घंटे का समय सफाई के लिए देने का निश्चय करे तो वह उसे पूरा कर सकता है। एक घंटे का अभ्यास दृढ़ हो जाने पर इसे दो घ्ंटे तक बढ़ाया जा सकता है और क्रमशः अपने लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है। परिवर्तन के लिए जो निश्चय उभरे, उससे अपने मित्रों एवं कार्य क्षेत्र के लोगों को परिचित करा देना ठीक रहता है। यह एक ऐसा मनोवैज्ञानिक दबाव है, जो निश्चय को पूरा करने में सहायक होता है।