….इसीलिए तो बेटियां समाज की शान कहलाती है
शीर्षक “बेटियां”
लेते ही जन्म घर आंगन में
खुशियां लाती हैं
कदमों की छम-छम से अपने घर की रौनक बढ़ाती है
इसीलिए तो बेटियां समाज की शान कहलाती है
कभी मां का साया
तो कभी पिता की परछाई कहलाती है
कभी ममता का सागर
तो कभी रौद्र रूप दुर्गा सा दिखाती हैं
इसीलिए तो बेटियां समाज की शान कहलाती है
शक्ति ,संयम ,त्याग से हर रिश्ता निभाती हैं
जो निभा ना पाएं बेटे
वह फर्ज भी निभाती हैं
इसीलिए तो बेटियां समाज की शान कहलाती है
हेमन्त की कलम से