भारतीय शैलियों में बने चित्र मानवीय प्रेम की अभिव्यक्ति हैं
समाप्त हो रहीं भारतीय पारम्परिक कला व कलाकारों पर भी विशेष ध्यान देने की जरुरत है, तभी भारतीय कला की पहचान बचेगी
क्राइम रिव्यू
लखनऊ। भारतीय शैलियों में बने चित्र मानवीय प्रेम की अभिव्यक्ति रही है चाहे वह लौकिक रही हो या अलौकिक। भारतीय पारम्परिक शैलियों में बने चित्रकला एक अमूल्य धरोहर है। यदि हमें भारतीय कला संस्कृति साहित्य की बात बड़े जोर शोर से करते हैं तो सिर्फ बात नहीं उन्हें सहेजना , सवारना और संरक्षित करना भी आवश्यक है क्योंकि यही हमारी भारतीय संस्कृति की पहचान है जो आने वाले पीढ़ियों को दिया जा सकता है। हम जिन संस्कारों की बात करते हैं क्या वास्तव में हम उनकी कदर भी करते हैं ? यह एक गंभीर प्रश्न है। सिर्फ थोपना या लम्बी लम्बी बातें करने से नहीं बल्कि उसपर विशेष ध्यान देने की भी आवश्यकता है। बड़े ही दुःख और अफ़सोस के साथ यह कहना पड़ता है की भारत में भारतीय पारम्परिक कलाओं के विकास या उत्थान के लिए कोई संसथान नहीं हैं। परंपरागत शैलियों का जो नुकसान या समाप्त होने की स्थिति बनी वह यही की भारत में भारतीय कलाओं व कलाकारों पर ध्यान न देना है। इस पर कोई भी योजना नहीं बनी और न ही कोई विशेष संसथान ही बनें। सरकार लुप्त होते बाघों को तो बचा रही है लेकिन इसके साथ भारतीय पारम्परिक चित्रकारों पर भी ध्यान अवश्य दे। वर्ना यह समय के साथ समाप्त हो जाएगी। उक्त संवाद रविवार को अस्थाना आर्ट फोरम के मंच पर पद्मश्री विजय शर्मा ने कही। अस्थाना आर्ट फ़ोरम के ऑनलाइन मंच पर ओपन स्पसेस आर्ट टॉक एंड स्टूडिओं विज़िट के 18वें एपिसोड का लाइव आयोजन रविवार को प्रातः 11 बजे किया गया। इस एपिसोड में आमंत्रित कलाकार के रूप में चम्बा हिमांचल प्रदेश से भारतीय लघु चित्रकार पद्मश्री विजय शर्मा रहे। इनके साथ बातचीत के लिए नई दिल्ली से चित्रकार व कला लेखक रविन्द्र दास और इस कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में देश के जाने माने वरिष्ठ कलाविद,समीक्षक व ललित निबन्धकार नर्मदा प्रसाद उपाध्याय भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम के संयोजक भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया कि विजय शर्मा को छोटे छोटे चित्र बनाने की नैसर्गिक प्रतिभा से सम्पन्न मेधावी चित्रकार और कला इतिहासकार के रूप में व्यापक रूप से जाना माना जाता है। पहाड़ी लघु चित्रकला में दक्षता रखने वाले पद्मश्री विजय शर्मा देश मे कांगड़ा शैली के चुनिंदा चित्रकारों में से एक हैं। आपने हिमांचल प्रदेश में छोटे आकार की पहाड़ी चित्रकला की परंपराओं को पुनर्जीवित करने में अग्रणी भूमिका निभाई। कुशल चित्रकार होने के अलावा, आप अनुसंधानकर्ता और निर्बाध रूप से अत्यधिक सृजनशील लेखक भी हैं तथा आपने पहाड़ी चित्रकारी की कला में कई युवा कलाकारों को प्रशिक्षित किया है। विजय शर्मा का जन्म 12 सितंबर 1962 को चम्बा , हिमांचल प्रदेश में हुआ। आपने चित्रकारी की कला,स्थानीय कला अध्यापक, मिर्जा असगर बेग से सीखी। आपने हिमांचल प्रदेश , विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। आप वाराणसी और राजस्थान में कई पारंपरिक लघु चित्रकारों के संपर्क में आये। तथापि आपके वास्तविक गुरु डॉ विश्व चन्द्र ओहरी रहे, जो एक वरिष्ठ विद्वान , विख्यात कला इतिहासकार और हिमांचल राज्य संग्रहालय, शिमला के संस्थापक संग्रहपाल (क्यूरेटर) हैं। आपने हिमांचल प्रदेश की कला और कलाकारों को बढ़ावा देने के लिए चम्बा में शिल्प परिषद की स्थापना की और इस एन जी ओ के अध्यक्ष के रूप में आप इसका नेतृत्व करते हैं। हिमांचल प्रदेश सरकार ने आपको हिमांचल कला संस्कृति और भाषा अकादमी के शासी निकाय के सदस्य के रूप में मनोनीत किया। आप उत्तर क्षेत्र संस्कृति , पटियाला की कार्यक्रम कार्यकारिणी समिति के भी सदस्य हैं। आपने चम्बा रुमाल कशीदाकारी कढ़ाई के शिल्प का पुनरुद्धार करने के लिए दिल्ली शिल्प परिषद के मानद सलाहकार के रूप में कार्य किया है। धर्मशाला में स्थित एन जी ओ कांगड़ा आर्ट्स प्रमोशन सोसाइटी के संस्थापक सदस्य और प्राध्यापक के रूप में आप बीसियों विद्यार्थियों को प्रशिक्षित करते रहे हैं। आपने भारत और विदेशों की व्यापक रूप से यात्रा की और समूचे विश्व मे भारतीय चित्रकलाओं के प्रमुख संग्रहों का अध्ययन किया है। आपने कई स्थानों पर पहाड़ी चित्रकला की तकनीक पर व्याख्यात्मक प्रदर्शन किए हैं।
आपने कलात्मक कौशल के अलावा, आप कला समालोचक, कला इतिहासकार, संपादक और लेखक भी हैं। तथा आपने हिमांचल प्रदेश की पहाड़ी लघु चित्रकारी और अन्य कलाओं पर कई शोधपरक लेख और पुस्तकें लिखीं हैं। आप उन विरले विद्वानों में से एक हैं जो शरदा और ताकरी लिपियाँ पढ़ सकते हैं। आपने कई गूढ़ लिपि में लिखे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेजों का अर्थ स्पष्ट किया है और उन्हें प्रकाशित किया है। आप भारतीय चित्रकला की विभिन्न शैलियों में चित्रकारी करते हैं। फिर भी बसोहली और कांगड़ा स्कूल ऑफ पेंटिंग की शैली में आपको विशेष योग्यता हासिल है। आप हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में भी निपुण हैं , जिससे आपको रागमाला पेंटिंग की रचना करने में मदद मिलती है। आपने सुप्रसिद्ध भारतीय कवि गुलज़ार की कविताओं के आधार पर संगीत रचना करने की भी कोशिश की है। आपको कई सम्मानों और पुरस्कारों से विभूषित किया गया है, जिनमे आपकी रागमाला पेंटिंग्स के लिए राज्य और 2012 में इंडियन मिनिएचर पेंटिंग में देश का पहला पद्मश्री सम्मान श्री शर्मा को माननीया उस समय रहीं राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा सिंह पाटिल द्वारा प्रदान किया गया।
कार्यक्रम के दौरान विजय शर्मा के चित्रों को भी दिखाया गया जो पहाड़ी शैलियों पर आधारित थीं और जिसपर अनेकों प्रश्न भी हुए जिसका उत्तर विजय शर्मा ने बड़े ही सरलता से दिया। विजय शर्मा ने कहा की भारतीय लघु चित्र कल्पनाओं पर आधारित हैं। जो अनेकों राग, काव्यों , धार्मिक विषयों और साहित्यिक अभिप्रायों पर चित्रित किये गए हैं। इन चित्रों को समझने के लिए हमे साहित्य काव्य और आध्यात्मिकता के दार्शनिक पक्षों को सही अर्थों में समझना होगा। तभी इन चित्रों का आनंद लिया जा सकता है। राजपूत राज दरबारों में कला व कलाकारों का बहुत सम्मान हुआ है सभी कलाकार दरबारी कलाकार होते हुए अनेकों विषयों पर अपनी कल्पनाओं को चित्रित किया है। राजपूत कला , संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग थे। उस समय की कलाएं राजाश्रित कलाएं ज्यादा विकसित रहीं। आज देखने में आता है की जहाँ पर भारतीय कलाएं पनपी , विकसित हुईं वहां आज कोई कलाकार और कला नहीं हैं यह बेहद दुखद है। नर्मदा प्रसाद ने कहा की भारत की पारम्परिक कलाएं बहुत ही समृद्ध रही हैं जिन्हे सहेजने की आवश्यकत है। अनेको पारम्परिक कलाकारों ने आधुनिक प्रसंगों का भी अपने चित्रों में प्रयोग किया है। जिनमे से विजय शर्मा एक महत्वपूर्ण कलाकार हैं। शर्मा एक प्रयागराजी कलाकार हैं जो कला साहित्य लेखन जैसे तमाम विधाओं में पारंगत और जानकर हैं। आज अंतर्विधायी विमर्श की बड़ी कमी हैं। एक विधा से दूसरे विधा से जुड़ने वाली प्रवृत्ति लगभग समाप्त सी हो गयी है। भारतीय पहाड़ी शैली में राधा कृष्ण के दैवीय प्रेम पर अनेकों चित्र बनायें गए हैं। लेकिन बाद में फूहड़पन भी हावी हो गया। अष्टनाइका की अवधारणा अलग है। रीतिकालीन, रागमालाओं पर भी अनेको चित्र बने हैं। भारतीय लघुचित्र में बने चित्र दैवीय अवधारणाओं पर आधारित हैं।
हर चित्रों के दार्शनिक दृष्टिकोण होते हैं। खजुराहों के मूर्ति शिल्प आध्यात्मिक दृष्टिकोण के शिल्प हैं , उसे सिर्फ कमनीय दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। कोहबर में बने चित्र पवित्र चित्रांकन होते हैं जो हमारे जीवन के मंगलकामनाओं के लिए बनाये जाते हैं। अनेको बार यह देखने को मिलता है की मिथ्या ढंग से भारतीय कलाओं ,शिल्पों को प्रस्तुत किया जाता है जबकि ये सभी चित्र और शिल्प भारतीय दैवीय अभिप्रायों पर बनाये गए हैं जो अर्थपूर्ण हैं।