मोरी भीगे चुनर भीगे अंगिया रंग डारो न डारो…
लोकरंग फाउंडेशन और अवध भारती संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में फाग गीतों की कार्यशाला का शुभारंभ
क्राइम रिव्यू
लखनऊ। फागुन में फाग गाने का चलन आठौ अर्थात राधाष्टमी तक है पूरे अवध प्रांत में बड़ी धूमधाम से फाग गाया जाता है जिसमें लोग पूरी मण्डली के साथ फाग गाते हैं ये परम्परा सदियों से चली आ रही है। लोकरंग फाउंडेशन और अवध भारती संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में फाग गीतों की कार्यशाला का सोमवार से प्राग नारायण रोड पर कल्याण भवन के सामने जोशी क्लासेज के ऑडिटोरियम में शुभारंभ हुआ। कार्यशाला में गोंडा के पं शिवपूजन शुक्ल और लखनऊ की लोकगायिका कुसुम वर्मा फाग गीत सिखायेंगे। कार्यशाला का उद्घाटन अशोक बनर्जी और डाॅ राम बहादुर मिसिर ने माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण करके किया। उन्होंने फाग गीतों के रस और विविधता, ताल और कलाकारों के बारे में बताया। पहले दिन मोरी भीगे चुनर भीगे अंगिया रंग डारो न डारो ….पिया पतिया लिखै घरवाली मोरी गोदिया होरिल बिन खाली …ये चौताल सिखाया। लोकगायिका कुसुम वर्मा ने बताया कि कार्यशाला 26 मार्च तक चलेगी और 27 मार्च को मंच प्रस्तुति होगी। कार्यशाला में बोले चिरइया संस्था के अरूण तिवारी, विश्वंभर नाथ अवस्थी, प्रदीप तिवारी तथा तमाम प्रतिभागी उपस्थित रहे। कानपुर से कल्पना सक्सेना, बाराबंकी से सरोज श्रीवास्तव, गीता शुक्ला, जया श्रीवास्तव, डाॅ प्रतिभा मिश्रा, सरिता अग्रवाल, सुधा चौधरी आदि प्रतिभागियों ने गीतों को गाकर फाग का रंग बिखेर दिया।