सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला, मंदिर का मालिक कौन..
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एएस बोपन्ना की एक बैंच ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई की
क्राइम रिव्यू
नई दिल्ली। देश के मंदिरों की संपत्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक बड़ी टिप्पणी की । सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि मंदिरों के किसी भी पुजारी को मंदिर की जमीन का मालिक नहीं माना जा सकता । कोर्ट ने इस दौरान साफ कहा कि देवता ही मंदिर से जुड़ी जमीन के मालिक हैं । सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने अपने फैसले में कहा कि पुजारी केवल मंदिर की संपत्ति के कामकाज को संभालने के मकसद से जमीन से जुड़े काम कर सकता है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एएस बोपन्ना की एक बैंच ने मंगलवार को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई की । इस आदेश में कोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से एमपी लॉ रेवेन्यू कोड-1959 के तहत जारी किए गए दो सर्कुलर्स को रद्द कर दिया था । इस आदेश में पुजारी के नाम राजस्व रिकॉर्ड से हटाने का आदेश दिया गया था, ताकि पुजारी अवैध रूप से मंदिर की सम्पत्तियों की बिक्री न कर सके ।
इस मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा – मंदिर के ऑनरशिप कॉलम में केवल देवता का नाम ही लिखा जाए, चूंकि देवता एक न्यायिक व्यक्ति होने के कारण जमीन का मालिक होता है । जमीन पर देवता का ही कब्जा होता है, जिसके काम देवता की ओर से सेवक या प्रबंधकों की ओर से किए जाते हैं ।
ऐसी स्थिति में किसी भी मंदिर का मैनेजर या पुजारी के नाम का जिक्र ऑनरशिप कॉलम में करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा – साफ है कि पुजारी काश्तकार मौरुशी, (खेती में काश्तकार) या सरकारी पट्टेदार या मौफी भूमि (राजस्व के भुगतान से छूट वाली भूमि) का एक साधारण किरायेदार नहीं है, बल्कि उसे औकाफ विभाग (देवस्थान से संबंधित) की ओर से ऐसी जमीन के केवल प्रबंधन के उद्देश्य से रखा जाता है।
बैंच ने कहा – पुजारी केवल देवता की संपत्ति के मैनेजमेंट करने की एक गारंटी है और अगर पुजारी अपने काम करने में, जैसे प्रार्थना करने और जमीन का प्रबंधन करने संबंधी काम में नाकामयाब रहे तो इसे बदला भी जा सकता है। इस तरह उन्हें जमीन का मालिक नहीं माना जा सकता।