सुहागिनों ने अखंड सौभाग्य की कामना के साथ रखा वट सावित्री व्रत
मनकामेश्वर घाट उपवन में श्री मनकामेश्वर मंदिर की महंत देवता गिरी के सानिध्य में महिलाओं ने वट वृक्ष की पूजा की
क्राइम रिव्यू
लखनऊ। सुहागिन महिलाओं ने आज यानि 10 जून को वट सावित्री व्रत रखा और वट वृक्ष की पूजा कर अखंड सौभाग्य की कामना की। इस व्रत का सम्बन्ध देवी सावित्री के दृढ़ सौभाग्य की कामना से जिसमें देवी ने यमराज से भी पति के पुनः प्राण मांग लिये थे।
जनमानस में इसको बरगदाई पूजा भी कहते हैं। यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को रखा जाता है। राजधानी में विभिन्न जगहों पर बरगद की पूजा की गई। कहीं – कहीं महिलाओं ने अपने घर पर ही बरगद की डाली लाकर पूजा की।
मनकामेश्वर घाट पर की महिलाओं ने पूजा
मनकामेश्वर घाट उपवन में श्री मनकामेश्वर मंदिर की महंत देवता गिरी के सानिध्य में महिलाओं ने वट वृक्ष की पूजा की। महंत ने वट देवता का पूजन कर सर्वकल्याण की कामना की। महिलाओं ने वट वृक्ष को सिंदूर, रोली, फूल, अक्षत, चना, मिठाई अर्पित कर विधि-विधान से पूजन किया। परिवार की उन्नति की कामना से विशेषतौर से खरबूजे चढा़ते। उसके बाद कच्चे सूत में हल्दी लगाकर उसे वट वक्ष के तने पर परिक्रमा करते हुए 12 बार लपेटा.मान्यता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में विष्णु और पत्तों पर शिव का वास होता है।
अन्य जगहों पर भी हुई पूजा
इसके अलावा निशातगंज, चौथी गली और पेपर मिल कालोनी स्थित तिकुनिया पार्क, न्यू हैदराबाद सहित अन्य जगहों पर भी महिलाओं ने बरगदाई पूजा की।
पौराणिक कथा
श्रीमहंत देव्यागिरि ने कहा कि वट सावित्री व्रत सुहागिनों को संदेश देता है कि उनका तप किसी भी तरह से साधकों से कम नहीं है। देवी सावित्री ने अपने पति के प्राण तक यमराज से पुनः प्राप्त कर लिये थे। उन्होंने पौराणिक आख्यान देते हुए बताया कि राजर्षि अश्वपति की एकमात्र संतान सावित्री थी। उन्होंने वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपने जीवनसाथी के रूप में चुना, तब नारदमुनि ने उन्हें बताया कि सत्यवान की आयु बहुत कम है पर सावित्री ने अपना निर्णय नहीं बदला। वह राजवैभव त्याग कर सत्यवान के साथ उनके परिवार की सेवा करते हुए वन में रहने लगीं। महाप्रयाण के तीन दिन पहले से ही सावित्री ने व्रत रखना शुरू कर दिया था।
यमराज से मांग लिये पति के प्राण
जब यमराज, सत्यवान के प्राण हरकर जाने लगे तक सावित्री भी उकने पीछे-पीछे जाने लगीं। आखिरकार यमराज ने प्रसन्न होकर तीन वरदान दिये कि सत्यवान के दृष्टिहीन माता-पिता के नेत्रों की ज्योति आ जाए। उनका छिना हुआ राज्य वापस मिल जाए और उन्हें सौ पुत्रों की प्राप्ति हो।