तुम्हारी आवाज, जैसे तपते सहरा की पहली बरसात
शीर्षक ” आवाज“
तुम्हारी आवाज, जैसे तपते सहरा की पहली बरसात,
जैसे ओस मैं भीगा हुआ चांद,
जैसे फूल की मीठी छुअन,
जैसे इठलाई हो सुगंधित पवन,
जैसे बल खाई हो नदिया की धार,
जैसे शब की आंखों का खुमार,
बस एक ही नाद,
तुम्हारी आवाज़
नीरू नीर