पुरी में आज निकलेगी भगवान जगन्नाथ की भव्य रथयात्रा, देश-विदेश से लाखों श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़

भगवान जगन्नाथ की भव्य रथयात्रा

क्राइम रिव्यू: जगन्नाथ रथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध त्योहार है जिसे पुरी में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। ओडिशा के पुरी में इस दिन बेहद भव्य तरीके से रथ यात्रा निकलती है, इसलिए इसे पुरी रथ यात्रा और रथ महोत्सव के नाम से भी जाना जाता हैं। जगन्नाथ रथ यात्रा में देश-विदेश से आए लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचने के लिए हजारों श्रद्धालु ललायित रहते हैं। तीन रथ मंदिर के मुख्य द्वार ‘‘सिंह द्वार” के सामने खड़े हैं जो आज देवी देवताओं को लेकर गुंडीचा मंदिर जाएंगे जहां देवी-देवता एक सप्ताह रहेंगे।

भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष, भगवान बलभद्र का रथ तालध्वज और देवी सुभद्रा का रथ द्वर्पदलन कहलाता है। तीनों रथों का निर्माण हर साल विशेष वृक्षों की लकड़ी से किया जाता है। परंपरा के अनुसार, इन्हें बढ़इयों का एक दल पूर्ववर्ती राज्य दासपल्ला से लाता है। ये बढ़ई वह होते हैं जो पीढ़ियों से यह कार्य करते आ रहे हैं। प्रत्येक वर्ष रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि को प्रारंभ होती है और इस बार ये तिथि 20 जून (मंगलवार) को पड़ रही है। रथ यात्रा को लेकर सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) के मुख्य प्रशासक रंजन कुमार दास ने कहा कि मंगलवार को भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ के रथों को श्री गुंडिचा मंदिर तक खींचा जाएगा तो पुरी में लगभग 10 लाख लोगों के जुटने की उम्मीद है। इस बीच, देवताओं के तीन विशाल रथों को उत्सव के लिए 12वीं शताब्दी के श्री जगन्नाथ मंदिर के सामने खड़ा किया गया है।

पुरी श्रीमंदिर में सोमवार को हजारों श्रद्धालुओं ने भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ के ‘‘नबजौबन दर्शन” किए। श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन के मुख्य प्रशासक रंजन कुमार दास ने बताया कि ‘‘नबजौबन दर्शन” के लिए मंदिर में दाखिल होने का मौका पाने के लिए करीब सात हजार श्रद्धालुओं ने टिकट खरीदे। बाद में आम लोगों को पूर्वाह्न 11 बजे तक दर्शन की अनुमति मिली। इसके बाद प्रसिद्ध रथयात्रा के मद्देनजर अनुष्ठान के लिए मुख्य मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए।

‘‘नबजौबन दर्शन” का अर्थ है देवी-देवताओं के युवा रूप का दर्शन। ‘स्नान पूर्णिमा’ के बाद देवी-देवताओं को 15 दिन के लिए अलग कर दिया जाता है। इसे ‘अनासारा’ कहा जाता है। पौराणिक मान्यता है कि ‘स्नान पूर्णिमा’ को अधिक स्नान करने से देवी-देवता बीमार हो जाते हैं और आराम करते हैं। ‘‘नबजौबन दर्शन” से पहले पुजारी विशेष अनुष्ठान करते हैं जिसे ‘नेत्र उत्सव’ कहा जाता है। इस दौरान देव प्रतिमाओं की आंखों को नए सिरे से पेंट किया जाता है।

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