मानसिक विकास का मूल आधार है संगीत शिक्षा : रामजी सिंह
भारतीय शिक्षा समिति द्वारा प्रधानाचार्य सम्मेलन का आयोजन
क्राइम रिव्यू
लखनऊ। मानसिक विकास का मूल आधार है संगीत शिक्षा, मन की ताकत को बढ़ाने वाली, मानसिक विकास करने वाली तथा मनोमय कोश को संवार्धित करने वाली शिक्षा का नाम है संगीत शिक्षा। शारीरिक शिक्षा, अन्नमय कोश को विकसित करती है। बालक के शारीरिक विकास में सहयोगी बनती है। तथा समाज में कठिनाईयों से लड़ने में शारीरिक मजबूती प्रदान करती है। विद्या भारती के पांच आधारभूत विषयों से मनुष्य के शरीर के पंचकोशों का विकास होता है। जिसमें योग शिक्षा से प्राणमय कोश मजबूत बनता है। तमाम शारीरिक विकारों से निजात मिलती है। संस्कृत साहित्य ज्ञान का भंडार है। ऋषि मुनियों के हजारों साल के अनुभव और शोधों का समृद्धकोश ज्ञानमय कोश को विकसित करता है। आप सभी प्रधानाचार्यों को संस्कृत के प्रति गौरव का भाव जागाना चाहिए। यह व्याकरण और साहित्य दोनों से परिपूर्ण है। नैतिक व अध्यात्मिक शिक्षा मनुष्य के आनंदमय कोश को समृद्ध करते हुए संवेदना दायित्वबोध, कर्तव्यबोध का अनूठा संग्रह है। यह बात भारतीय शिक्षा समिति द्वारा आयोजित प्रधानाचार्य सम्मेलन के तीसरे दिन प्रदेश निरीक्षक श्री रामजी सिंह ने कही।श्री रामजी सिंह ने गौरवशाली स्वतंत्रता के बाद भारतीय समाज के मनोभावों की चर्चा करते हुए कहा कि स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में भी क्या हम मानसिक गुलामी के प्रभाव से मुक्त हो पाए। विद्या भारती द्वारा नई शिक्षा नीति के सहयोग व क्रियान्वयन हेतु जो प्रयास किया जा रहा है क्या वह धरातल पर आप सब उतारेंगे। यदि हम नई शिक्षा नीति को लागू नहीं कर पाए तो यह सिर्फ दस्तावेज बनकर रह जाएगा। कान्वेन्ट शिक्षा के विषय में चर्चा करते हुए कहा कि अनाथ व आश्रयहीन बच्चों के लिए खोले जाने वाले स्कूल को कान्वेन्ट स्कूल कहा गया था। क्या हम अपनी मूल जड़ों से दूर होते जा रहे हैं। विद्या भारती के कार्यकर्ता आत्मविश्वास से भरे हुए अपने पथ पर अग्रसर है। संस्कार युक्त शिक्षा हमारी विशेषता है। हजारों वर्षों तक की मानसिक गुलामी से हमें आजाद होना पड़ेगा। उन्होंने शिक्षा के मूल कार्यों का जिक्र करते हुए कहा कि समाज में हमारी लोक प्रियता बढ़ रही है। हम अपनी योजना अनुसार राष्ट्रीयता व हिन्दुत्व के लिए कार्य कर रहे है। बच्चों और अभिभावकों से हमारा निरन्तर सम्पर्क बना रहना चाहिए। प्रसन्न बच्चा, प्रसन्न विद्यालय कठोर एवं सख्त प्रशासन तथा स्नेहिल अभिभावक के रूप में प्रधानाचार्य की भूमिका होनी चाहिए।
रक्षाबंधन, सामाजिक समरसता व अन्य पर्वों पर समाज के मध्य हमें जाना चाहिए। सामाजिक सरोकारों और व्यवस्थाओं से हमारे भैया बहनों को अवगत कराना चाहिए। हमारी परीक्षा मूल्यांकन तथा नीतियां स्पष्ट व सुचितापूर्ण होनी चाहिए। आचार्य व कर्मचारी सहयोगियों के मध्य यह विश्वास उत्पन्न होना चाहिए कि प्रधानाचार्य विद्यालय के विकास के लिए ही कार्य कर रहे है।
कार्यक्रम संचालन वरिष्ठ प्रधानाचार्य श्री योगेन्द्र प्रताप सिंह ने किया। कार्यक्रम में क्षेत्रीय बालिका शिक्षा प्रमुख श्री उमाशंकर मिश्र, भारतीय शिक्षा समिति के अध्यक्ष श्री हरेन्द्र श्रीवास्तव, भारतीय शिक्षा समिति के मंत्री महेन्द्र कुमार सिंह, भारतीय शिक्षा समिति के कोषाध्यक्ष आरके कनौजिया, सम्भाग निरीक्षक श्री सुरेश कुमार व अवरीश समेत अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे।