ज्योतिष : कुंडली मे भावों के कारक और भाव के कारकत्व का महत्व
क्राइम रिव्यू
ॐ नमः शिवाय
ज्योतिष कक्षा Part—2
प्रिय पाठकों,
ज्योतिष कक्षा के दूसरे अध्याय में आप सभी लोगों का स्वागत हैI आज हम भावों के कारक और भाव के कारकत्व के विषय में जानेंगे:-
भाव के कारक:—
प्रथम भाव– प्रथम भाव के कारक सूर्य देव हैंl
द्वितीय भाव -द्वितीय भाव के कारक बृहस्पति देव हैं।
तृतीय भाव – तृतीय भाव के कारक मंगल देव एवं बुध देव हैं।
चतुर्थ भाव – चतुर्थ भाव के कारक चंद्रमा एवं शुक्र देव हैं।
पंचम भाव – पंचम भाव के कारक बृहस्पति देव हैं।
षष्ठ भाव – छठे भाव के कारक मंगल देव एवं शनि देव हैं।
सप्तम भाव– सप्तम भाव के कारक शुक्र देव हैं।
अष्टम भाव – अष्टम भाव के कारक शनि देव हैं।
नवम भाव – नवम भाव के कारक सूर्य देव एवं बृहस्पति देव हैं।
दशम भाव – दशम भाव के कारक सूर्य देव, बुध देव, बृहस्पति देव एवं शनि देव हैं।
एकादश भाव – एकादश भाव के कारक बृहस्पति देव हैं।
द्वादश भाव – द्वादश भाव के कारक शनिदेव हैं।
भाव के कारकत्व :—
नीचे दिए गए कुंडली में भी भावों के कारकत्व के विषय में समझा जा सकता है:-
प्रथम भाव— प्रथम भाव से व्यक्ति का शरीर , शरीर की रचना, व्यक्तित्व, चरित्र, स्वभाव, स्वास्थ्य, मस्तिष्क, सिर आदि का विचार किया जाता है।
द्वितीय भाव— द्वितीय भाव से व्यक्ति के संचित धन, कुटुंब, वाणी , दाहिनी आंख , जीभ, भोजन , गहने, कीमती पत्थर, आदि का विचार किया जाता है।
तृतीय भाव— तृतीय भाव से छोटे भाई बहन, पड़ोसी, साहस, परिश्रम, बहादुरी , दाहिना कान, बाजू, छोटी मोटी यात्राएं, संचालन , लेखन , पुस्तक संपादन, समाचार पत्रों की सूचना , मीडिया, आदि का विचार किया जाता है।
चतुर्थ भाव— चतुर्थ भाव से माता, वाहन , घरेलू वातावरण , भूमि, जन्म स्थान, जमीन जायदाद, सीना, हृदय, सुख आदि का विचार किया जाता है।
पंचम भाव— पंचम भाव से प्रथम संतान , बुद्धि, प्रेम संबंध, मनोरंजन , सट्टेबाजी , पूर्व जन्म पुण्य कर्म, कलात्मकता , निपुणता , खेलकूद आदि का विचार किया जाता है।
षष्ठ भाव— षष्ठ भाव से रोग, रिपु, ऋण, विवाद , चोट , मामा मामी , सेवा, पालतू पशु, किराएदार, अधीनस्थ कर्मचारी, नौकर, नौकरी , प्रतियोगिता, आदि का विचार किया जाता है।
सप्तम भाव —सप्तम भाव से जीवनसाथी , जीवन साथी के साथ रिश्ता , साझेदारी , प्रत्यक्ष शत्रु , जीवन के लिए खतरा , आदि का विचार किया जाता है।
अष्टम भाव —अष्टम भाव से आयु, मृत्यु का प्रकार यानी मृत्यु कैसे होगी, बाधाएं , दुर्घटनाएं, विरासत , पैतृक संपत्ति, पेंशन, इंश्योरेंस का पैसा, पीड़ा , चोरी, डकैती , मानसिक परेशानी , आदि का विचार किया जाता है।
नवम भाव— धर्म , सौभाग्य , चरित्र , लंबी दूरी की यात्राएं , श्रद्धा , भक्ति , आध्यात्मिक झुकाव , उच्च शिक्षा , तीर्थ यात्रा, गुरु, पिता , आदि का विचार किया जाता है।
दशम भाव— कीर्ति , शक्ति, नेतृत्व , सम्मान , सफलता , घुटने, कर्म , अधिकारियों से संबंध, सरकारी सम्मान , नौकरी में तरक्की, व्यापार में सफलता, आदि का विचार किया जाता है।
एकादश भाव —लाभ , समृद्धि, इच्छाओं की पूर्ति , मित्र , बड़े भाई— बहन, बाया कान , कार्यों में सफलता, रोग मुक्ति, पीड़ा से मुक्ति, आदि का विचार किया जाता है।
द्वादश भाव —द्वादश भाव से हानि, कारावास, व्यय, दान, वैदिक यज्ञ, शयन सुविधा , अय्याशी, भोग विलास ,शादी में नुकसान ,विदेश, लंबी यात्राएं, संबंध विच्छेद, विदेश में व्यवस्थापन आदि का विचार किया जाता है।
प्रिय पाठकों आज हमने कुंडली में भाव के कारक एवं भाव के कारकत्व के बारे में जानकारी ली। अगले बृहस्पतिवार को हम उच्च ग्रह एवं नीच ग्रह क्या होते हैं इस बारे में विस्तार से जानेंगे । अगले बृहस्पतिवार को एक कुंडली का सूक्ष्म विश्लेषण भी दिया जाएगा। जिससे आपको ज्योतिष समझने में आसानी होगी । इस बार विषय लंबा होने के कारण उदाहरण कुंडली नहीं दी जा रही है।
हमारी नई ऑनलाइन ज्योतिष की क्लास 9 अगस्त से शुरू होने वाली है जो भी पाठक इच्छुक हो कृपया नीचे दिए गए नंबर पर संपर्क करें।
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