वट सावित्री व्रत 2022 : वट सावित्री व्रत की तिथि को लेकर न हो कन्फ्यूज, ज्योतिषाचार्य से जाने सही दिन और पूजन विधि
ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाता है। महिलाएं यह व्रत अखंड सौभाग्य लिए करती हैं
क्राइम रिव्यू
लखनऊ। ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाता है। इसमें वट वृक्ष की पूजा की जाती है। इस व्रत को बरगदही व्रत भी कहते हैं।महिलाएं यह व्रत अखंड सौभाग्य लिए करती हैं। इस व्रत में उपवास रखते हैं। यह व्रत सावित्री द्वारा अपने पति को पुनः जीवित करने की स्मृति के रूप में रखा जाता है। वट वृक्ष को देवव्रत माना जाता है। इसकी जड़ों में ब्रह्मा जी, तने में विष्णु जी का और डालियो और पत्तियों में भगवान शिव का वास माना जाता है। वट वृक्ष की पूजा से दीर्घायु अखंड सौभाग्य और उन्नत की प्राप्ति होती है। यह कहना है नागपाल ज्योतिषाचार्य स्वस्तिक ज्योतिष केंद्र अलीगंज का।
अमावस्या 29 मई को दिन में 2:54 मिनट से प्रारम्भ होकर 30 मई को सांयकाल 4:59 मिनट तक है। वट वृक्ष पूजन करना श्रेष्ठ है। वट सावित्री व्रत के दिन काफी अच्छा संयोग बन रहा है। इस दिन शनि जयंती होने के साथ खास योग भी बन रहा है। इस दिन सुबह 7:12 से सर्वार्थ सिद्धि योग शुरू होकर 31 मई सुबह 5:08 तक रहेगा। सोमवार को होने से स्नान दान श्राद की सोमवती अमावस्या का भी संयोग है। इस खास योग में पूजा करने से फल कई गुना अधिक बढ़ जाएगा।
व्रत विधान–
प्रातः काल स्नान आदि के बाद बांस की टोकरी में सप्त धान्य रखकर ब्रह्मा जी की मूर्ति की स्थापना कर फिर सावित्री की मूर्ति की स्थापना करते हैं और दूसरी टोकरी में सत्यवान और सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करके टोकरी को वट वृक्ष के नीचे जाकर ब्रह्मा तथा सावित्री की पूजन के बाद सत्यवान और सावित्री की पूना करके बड़ (बरगद) की जड़ में जल देते हैं। पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भीगा चना, फूल तथा धूप से पूजन करते हैं। वट वृक्ष पूजन में तने में कच्चा सूत लपेट कर 108 परिक्रमा का विधान है। किंतु न्यूनतम सात बार परिक्रमा जरूर करनी चाहिए।