शासक को प्रजा के हित में कार्य करने की प्रेरणा दे गया नाटक ‘ अंतिम प्रजा ‘
अभिनव नाट्य समारोह तृतीय संध्या
क्राइम रिव्यू
लखनऊ। सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था निसर्ग के तत्वावधान में संत गाडगे जी महाराज प्रेक्षागृह में चल रहे अभिनव नाट्य समारोह की आज तीसरी सन्ध्या में वरिष्ठ नाट्य लेखक मोहम्मद असलम खान द्वारा लिखित एवं जय तिवारी द्वारा निर्देशित नाटक ‘ अंतिम प्रजा ‘ के मंचन ने शासक को प्रजा के हित में कार्य करने की प्रेरणा दी।लेखक एक नाटक अनेक की थीम पर आधारित अभिनव नाट्य समारोह की दूसरी बेला में एंडोमेंट आर्ट एडु फाउंडेशन की प्रस्तुति के तहत मंचित नाटक ‘अंतिम प्रजा ‘ ने शासक वर्ग की सदियों से चली आ रही यश और वैभव की भूख तथा शोषक प्रवृति को उजागर कर मानवीय संवेदनाओं की बात को जहां उजागर किया। वहीं दूसरी ओर राजनेताओं की कथनी और करनी पर करारा व्यंग्य करते हुए शासक के मूल कार्य प्रजापालन की ओर ध्यानाकर्षण करा कर उसके द्वारा जनहित कार्यों के धन से भोग विलास और अपनी प्रतिष्ठा के स्मारक बनाने जैसे कामों पर कुठाराघात कर शासक को प्रजा के हित में कार्य करने का संदेश दिया।नाटक ‘ अंतिम प्रजा ‘ की कथावस्तु के अनुसार लेखक मोहम्मद असलम खान ने अपने नाटक में बताया है कि एक विलासी राजा अपने यौवन काल में आखेट के लिए किसी वन में जाता है और वहाँ एक वनकन्या का शोषण करता है। कुछ वर्षों बाद वनरक्षक किसी सन्देह में एक वनकन्या (जिसका नाम स्वप्नीला है) को पकड़कर राजमहल में लाता हैं। स्वप्नीला जब अपना परिचय देती है तो राजा को पता चल जाता है कि वह उसी वनकन्या की पुत्री होती है जिसका राजा ने शोषण किया था। स्वप्नीला अपने जीवन संघर्ष के बारे में बताते हुए कहती है कि उसने अपने पिता के होते हुए अनाथ जैसा जीवन बिताया है और अपनी माँ के देहान्त के बाद वह बिल्कुल असहाय हो गयी है। स्वप्नीला अद्भुत नृत्य करती है। जिसे देख राजा मोहित हो जाता है और उसे अपने दरबार में ही रख लेता है। धीरे-धीरे स्वप्नीला को पता चल जाता है कि यह वही राजा है जिसने उसकी माँ के जीवन की पवित्रता को नष्ट किया था। आगे चलकर राजज्योतिषी की सहायता से षडयन्त्र रचकर राजा प्रथम की हत्या कर प्रतिशोध लेती है तथा राज्य के अन्य लोगों को और राजा द्वितीय को अपने जाल में फँसाती है। उधर राजकुमार सत्ता के अहंकार में मदहोश होकर सारी जनकल्याणकारी योजनाएँ रोक देता है। वह अपनी ही मूर्ति के निर्माण में सम्पूर्ण जन-धन का व्यय करने लग जाता है। जिससे जनता भूखों मरने को मजबूर हो जाती है। एक समय ऐसा आता है कि प्रजा राजा और राज्य को छोड़ देना ही उचित समझती है। अन्ततः प्रजा अपने राज्य को छोड़ देती है।
लेखक मोहम्मद असलम खान द्वारा लिखित नाटक ‘ अंतिम प्रजा ‘ बीते समय, आज के समय और आने वाले समय में एकदम समसामयिक है, जिसके सशक्त कथानकों में सनी वर्मा, अमन सिंह, रितेश शुक्ला, अभय कुमार सिंह, रवि सिंह, अमितेश वैभव चौधरी, स्वास्तिका शर्मा, वशिष्ठ जायसवाल, आशीष सिंह, गौरव वर्मा, देवांश प्रसाद, प्रवीण यादव, शशांक गुप्ता, सिकंदर निषाद, उत्कर्ष त्रिपाठी, देवांश प्रसाद सहित अन्य कलाकारों ने अपने दमदार अभिनय से रंगप्रेमी दर्शकों को देर तक बांधे रखा। नाटक के पार्श्व पक्ष में जामिया, शकील, शिवरतन (मंच निर्माण), शशांक गुप्ता (संगीत), जय तिवारी (प्रकाश), नीतू सिंह (वेशभूषा), शहीर अहमद (मुख सज्जा) का योगदान नाटक को सफल बनाने में महत्वपूर्ण साबित हुआ।