संविदा के दंश से जूझ रहे देश के करोड़ों युवा
क्राइम रिव्यू
लखनऊ। देश के करोड़ों युवा संविदा के दंश से जूझ रहे है, वर्षो से समान काम, समान वेतन की लड़ाई लड़ रहे, देश के करोड़ों संविदाकर्मियों को अब तक कोई राहत नही मिली है।इस बीच लगभग सभी सरकारी विभागों में सेवा प्रदाता के माध्यम से भर्ती की परम्परा की शुरुआत देश के करोड़ों युवकों के भविष्य को अन्धकार की तरफ ले जाएगी। अगर समय रहते नहीं चेते तो आने वाली नस्लें एक बार फिर से बंधुआ मजदूरों की तरह ठेकेदारों की गुलाम होगी।ये कहना है पूर्व सदस्य केन्द्रीय रोजगार गारंटी परिषद् ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार, संजय दीक्षित का जो इन दिनों देश भर के संविदाकर्मियों की सबसे बुलंद आवाज माने जाते है।बकौल संजय दीक्षित,
“सेवा प्रदाता के माध्यम से कर्मचारियों को खरीदना, बंधुआ मजदूर अथवा गुलाम पैदा करने की सरकारी पंजीकृत प्रक्रिया है” अब लगभग सभी सरकारी विभागों में विभागीय संविदा से बदतर नई सेवा प्रदाता नीति के तहत नौकरी बांटी जाने लगी है। “सेवा प्रदाता” एजेंसी का मतलब है, बंधुआ मजदूर रखने वाली निजी संस्था जिसका उद्देश्य मानवीय मूल्यों व् मानवाधिकारों को दरकिनार करके कर्मचारियों की सस्ते दामों पर खरीद- फरोख्त करना है।”
देश में सरकारी तंत्र ने सस्ती कीमत पर गुलाम, बंधुआ मजदूर खरीदने की नीति अपना ली है, अब सरकारी विभागों में बैठे उच्चाधिकारी अपने मन मुताबिक, अपने करीबी निजी संस्थाओ के नाम कर्मचारी उपलब्ध कराने का टेंडर स्वीकृत करा लेते है, फिर मोटी रिश्वत लेकर बेरोजगार युवाओं को रोजगार के नाम पर उन्हें शोषण के जाल में फांस लिया जाता है।संजय दीक्षित का सवाल है,
“सेवा प्रदाता के माध्यम से भर्ती करने का क्या औचित्य है? ये सरकार को स्पष्ट करना चाहिए। अगर सरकार मनरेगा में सेवा प्रदाता के माध्यम से भर्ती करती है तो सेवा प्रदाता भी इन सेवाओं के बदले फीस लेगा, सेवा प्रदाता जब जिसे चाहे हटा सकता है, जब चाहे रख सकता है, सेवा प्रदाता के माध्यम से होने वाली भर्ती देश में ठेकेदारी प्रथा की फिर से शुरुआत है जहाँ श्रमिको के न कोई अधिकार है न कोई सुविधा और न ही कोई स्थायित्व न ही उचित मजदूरी, ये शोषण की अत्याधुनिक साजिश हैI सरकार और संविदाकर्मियों के बीच में यदि सेवा प्रदाता को लाया जा रहा है तो इसमें सरकार का लाभ है वो श्रमिको की जिम्मेदारी से बच जाएगी, और सेवा प्रदाता को उसकी सेवाओ के लिए पैसा मिलेगा, मजबूर युवा काम न होने की स्थिति बेरोजगारी के चलते शोषित होने पर मजबूर होंगे, ये आज की स्थिति है, सोचिये आने वाला कल कैसा होगा? अब सवाल ये है कि सेवा प्रदाता नीति से मजदूर को क्या मिलेगा?
जो राष्ट्र “श्रम देवता” का सम्मान नहीं करता वो कभी विकास और खुशहाली की तरफ नहीं बढ़ता और दुर्भाग्य से हम आज तक श्रम का सम्मान करना नहीं सीख पाए है।संजय आगे बताते है,”ये लड़ाई सिर्फ मनरेगा भर्ती की नहीं है। बल्कि प्रदेश के हर युवा की लड़ाई है इन्हें सेवा प्रदाता के राक्षस से बचाना जरुरी है ताकि कल ये हमारे बच्चों का भविष्य न खा जाए और इसके लिए में कल से अपने आवास पर क्रमिक अनशन की शुरुआत कर रहा हूँ और जब तक मनरेगा में सेवा प्रदाता के माध्यम से भर्ती की प्रक्रिया को सरकार नहीं रोकती तब तक ये अनशन चलता रहेगा अगर आवश्यकता पड़ी तो प्रदेश के 45 हजार मनरेगा परिवार और प्रदेश के युवाओं के भविष्य के लिए आमरण अनशन पर भी बैठूँगा।”
बदतर है संविदा कर्मियों की स्थिति …
संजय का कहना है, “ पिछले १४ वर्षो से उत्तर प्रदेश के पैतालीस हजार मनरेगा कर्मचरियों के परिवार नरकीय जीवन जीने पर विवश है। बंधुआ मजदूरों की तरह काम करने वाले उत्तर प्रदेश के इन पैतालीस हजार कर्मचारियों को सरकार की तरफ से न्यूतम मानदेय दिया जाता है, सालों तक अपने जीवन का कीमती समय देने के बावजूद न तो इनकी कोई सामाजिक सुरक्षा है और न ही आर्थिक सुरक्षा व्यवस्था हैI सैकड़ों की संख्या में प्रदेश में इन मनरेगा कर्मचारियों की मौत के बाद इनके परिवार के लोग सड़क पर है, व्यवस्था में आखिर ऐसी असमानता क्यों है और किसके द्वारा उत्पन्न की जा रही है।यही मनरेगा के कर्मचारी कोरोनाकाल में उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक प्रवासी मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराकर देश में उत्तर प्रदेश को प्रथम स्थान पर लाये थे।
तब ये योग्य माने जाते है, लेकिन यही मनरेगा कर्मचारी जब “समान काम, समान वेतन” की बात करते है तो ये अयोग्य और बेईमान घोषित कर दिए जाते है।चाहे बिहार हो या उत्तर प्रदेश हो संविदाकर्मियों को चुनाव के समय लालच देकर अपने पक्ष में वोट कराना हर राजनितिक दल के हथकंडे में शामिल है, उत्तर प्रदेश की वर्तमान सत्ताशीन सरकार ने भी यही काम किया है, भारतीय जनता पार्टी के बड़े और नामी नेताओं ने बड़े बड़े मंचों से प्रदेश के संविदा कर्मियों की दिक्कतों को खत्म करने का वादा किया था जो रिकार्डेड है और लिखित तक है लेकिन सत्ता की बेशर्मी देखिये आज तक इन संविदाकर्मियों का कोई भला नहीं किया गया।
संविदाकर्मी विदेश से नहीं आये हमारे आपके परिवार के बच्चे है..
क्या संविदाकर्मी कही विदेश से आये है? ये हमारे आपके परिवार के बच्चे है जो सरकार की कुटिल मंशा के चलते बंधुआ मजदूरों की तरह काम करने के बाद मजदूरी के लिए सरकारी कर्मचारियों के सामने गिडगिडाते है, काम के दौरान मौत हो जाने पर भी इनके लिए न तो सरकार के पास कोई संवेदना है और ही सरकारी अधिकारियों के पास कोई संवेदना है।संजय गंभीर और चिंतित होने की मुद्रा में इंडिया मित्र के साथ अपनी वेदना साझा करते हुए बताते है, “मेरी लड़ाई सरकार से नहीं है, मै उस दमनकारी व्यवस्था का विरोध कर रहा हूँ जो आने वाले समय में हमारे बच्चो को गुलाम बनाने के लिए बनाई जा चुकी है और बनाई जा रही हैI इसके लिए जब तक जीवित हूँ क्रमिक अनशन से लेकर आमरण अनशन तक जब जरुरत महसूस होगी करूँगा।”